Shreenathji Temple राजस्थान श्रीनाथजी प्राकट्य दर्शन/आरती समय

By | 24 June 2023
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दोस्तों, आज हम एक ऐसे धाम के बारे में बताने जा रहे है, जो वैष्णव धर्म के वल्लभ संप्रदाय के प्रमुख तीर्थ स्थलों में गिना जाता है, और वैष्णव धर्म के लिए यह धाम सर्वोपरि माना जाता है। आज हम बात कर रहे है – नाथद्वारा के विश्व प्रसिद्ध श्रींनाथजी मंदिर(Nathdwara shreenathji mandir ) की। आज हम आपको इस ब्लॉग के जरिये श्रीनाथजी के मंदिर के साथ साथ श्रीनाथजी के स्वरुप के बारे में भी बताएँगे। 

श्रीनाथजी मंदिर का इतिहास / HISTORY OF SHRINATHJI TEMPLE 

बात है मुग़ल काल की जब इस देश ओर क्रूर आक्रांता औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 को एक भयानक आदेश जारी किया जिसके मुताबिक उसके राज्य में जितने भी हिंदू मंदिर है अभी को तोडा जाए। देश के कई मंदिर को तोड़ते हुए उसकी सेना ब्रजधाम पहुंची वहां उसने श्रीनाथजी के मंदिर(shreenathji temple) के बारे में बहुत सुना इसलिए उसने इस मंदिर को भी तोड़ने का आदेश जारी किया इसी के साथ उसके सैनिक वृंदावन में गोवर्धन के पास श्रीनाथ जी के मंदिर महुचे और उसे तोड़ने का काम शुरू कर दिया। जैसे मंदिर ले प्रमुख पुजारी श्री दामोदर दास बैरागीजी को यह खबर लगी वे श्रीनाथजी की विग्रह को मंदिर से बाहर निकल लिया, जिससे प्रभु के विग्रह को कोई भी नुकसान नहीं पंहुचा। दामोदर दास बैरागीजी वैष्णव पंत के वल्लभ संप्रदाय के थे और वे वल्लभ संप्रदाय के प्रमुख श्री वल्लभाचार्यजी के वंशज थे। दामोदर दास बैरागीजी ने बैलगाड़ी में ही श्रीनाथजी की मूर्ति को स्थापित कर दिया और अपने अथक और कठिन प्रयास बाद दामोदर दास बैरागीजी बूंदी, कोटा, किशनगढ़ और जोधपुर तक बहुत से राजाओं के पास विनती लेकर गए कि श्रीनाथ जी का मंदिर जल्दी बनवाकर उसमें श्रीनाथजी को विराजमान किया जाए। लेकिन कोई भी राजा औरंगजेब के डर से दामोदर दास बैरागीजी के प्रस्ताव को सभी ने अस्वीकार कर दिया था।

आज भी श्रीनाथ जी बाबा की चरण पादुकाएं कोटा शहर से लगभग 10 किमी की दूरी पर रखी हुई है, उसी स्थान को लोग आज चरण चौकी के नाम से जानते हैं। जब कोई भी राजा औरंजेब के डर मंदिर के प्रस्ताव को नहीं मान रहा था तब श्री दामोदर दास बैरागीजी ने मेवाड़ के राजा राणा राज सिंह के पास इस प्रस्ताव संदेश भिजवाया। राणा राजसिंह पहले भी एक बार औरंगजेब से पंगा ले कर उसकी नाराजगी मोल ले चुके थे। “एक बार की बात है जब किशनगढ़ राज्य की राजकुमारी चारुमती के बारे में सुन कर औरंगजेब ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव भेजा तो चारुमती ने औरंगजेब के इस प्रस्ताव को बिना सोचे समझे साफ साफ इंकार कर दिया और रातों-रात मेवाड़ के राजा राणा राजसिंह को संदेश भिजवा दिया कि राजकुमारी चारुमती उनसे जल्द से जल्द शादी करना चाहती है। अब राजा राणा राजसिंह ने बिना किसी भी तरह की देरी के किशनगढ़ पहुंचकर चारुमती से जल्दी ही शादी कर ली। राणा के इस कृत्य से औरंगजेब का उस गुस्सा हो गया और उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और तब से वह राजा राणा राजसिंह को अपना एक बड़ा शत्रु समझने लगा। यह बात लगभग सन 1660 की होगी। और मंदिर का प्रस्ताव मानकर राणा ने औरंगजेब को दूसरा मौका दे दिया था और अब राणा राजसिंह ने औरंगजेब को खुलकर चुनौती दी और प्रस्ताव में कहा कि ”मैं या मेवाड़ का जब तक एक भी राजपूत जीवित रहेगा श्रीनाथजी के विग्रह को कोई छू तक नहीं पाएगा”।

उस समय तक श्रीनाथजी बावा का विग्रह बैलगाड़ी में जोधपुर के पास एक छोटे से चौपासनी में थी और इसी चौपासनी गांव में बैलगाड़ी में ही कई महीने तक श्रीनाथजी बावा की सेवा होती रही। आज यह चौपासनी गांव जोधपुर का हिस्सा बन चुका है और जिस स्थान पर महीनो तक वह बैलगाड़ी खड़ी रही थी उस स्थान पर आज श्रीनाथजी का एक मंदिर बनाया गया है। लगभग 5 दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी के विग्रह का स्वागत करने के लिए खुद राणा राजसिंह सिहाद गांव गए। यह सिंहाड गांव उदयपुर से लगभग 30 मील के आसपास और जोधपुर से 140 मील के आसपास की दूरी पर स्थित है इसी गांव आज हम नाथद्वारा के नाम से जानते हैं।

श्रीनाथजी का विग्रह

श्रीनाथजी के नाथद्वारा के मंदिर में स्थापित श्रीनाथजी के विग्रह को भगवान कृष्ण का ही रूप माना जाता है। श्रीनाथजी मंदिर में स्थित विग्रह बिल्कुल उसी अवस्था में खड़ा है जिस अवस्था में भगवान गोवर्धनधारी श्री कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को अपने बाएँ हाथ की छोटी उँगली से उठाया था। श्रीनाथजी बावा का विग्रह दुर्लभ प्रकार के काले संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। 

श्रीनाथजी बावा के विग्रह का बायाँ हाथ हवा में उठा हुआ है और प्रभु ने दाहिने हाथ की मुट्ठी को कमर पर टिकाया हुआ है। श्रीजी के होंठों के नीचे एक हीरा भी लगा हुआ है जिसके लिए कहा जाता है की वह किसी मुग़ल राजा ने दिया था। श्रीनाथजी के विग्रह के साथ में एक सिंह, दो गौ, एक सर्प, दो तोता और दो मोर भी दिखाई देते है। 

श्रीनाथजी मंदिर की वास्तुकला नाथद्वारा – Architecture of Shrinathji Temple

नाथद्वारा में श्रीनाथजी बावा का मंदिर एक तरह से किलेनुमा महल के अंदर के भाग में स्थित है। नाथद्वारा मंदिर के बाहरी हिस्से में स्थित महल का निर्माण सिसोदिया वंश के महाराणा द्वारा करवाया गया था। मुख्य मंदिर का वास्तु लगभग उसी तरह से बना है जिस तरह से भगवान कृष्ण के पिता नंद बाबा को समर्पित वृंदावनमें एक मंदिर है। 

नाथद्वारा मंदिर के ऊपरी भाग पर एक कलश स्थापित किया गया है, कलश के साथ ही भगवान कृष्ण के प्रिय सुदर्शन चक्र को भी स्थापित किया गया है। कलश और सुदर्शन चक्र के साथ ही मंदिर के शिखर के उपर पर सात पताकाएं भी फहराई जाती है। यह सातों पताकाएं पुष्य मार्ग में वल्लभ सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करती है। श्रीनाथजी के मंदिर को ही लोग “श्रीनाथजी की हवेली” के नाम से भी जानते है।  

वैष्णव सम्प्रदाय में श्रीनाथजी को एक साक्षात मान कर ही उनकी सेवा की जाती है, इसी वजह से नाथद्वारा मंदिर को “श्रीनाथजी की हवेली” नाम से भी बोला  जाता है। अगर हम आम भाषा में कहे तो नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी का मंदिर भगवान श्रीनाथजी का घर है। इसलिए नाथद्वारा मंदिर में श्रीनाथजी की सेवा भी दूसरे मंदिरों से अलग प्रकार से होती है।

एक घर में जैसे उपयोग के लिए अलग अलग कक्ष बने होते है। वैसे ही इस मंदिर में दूध और मिठाई के लिए एक – एक रूम, सुपारी के लिए अलग रूम, रसोई घर, फूलों के लिए अलग रूम, बैठक कक्ष, घुड़साल, ड्रॉइंगरूम, आभूषण के लिए एक रूम, सोने और चांदी की पीसाई चक्की और लॉकर रूम बना हुआ है। 

इन सभी रूमों के अलावा भी जिस रथ पर श्रीनाथजी बावा के विग्रह को लाया गया था उसको भी घर ऐसे ही प्रदर्शित किया जाता है जैसे घर के मुख्य वाहन को। नाथद्वारा मंदिर के मुख्य परिसर में श्री कृष्ण के अलग अलग दो और रूप श्री मदन मोहनजी  और श्री नवीन प्रियाजी  को समर्पित दो मंदिर बने हुए है।

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Shreenathji Darshan ka Samay नाथद्वारा दर्शन टाइम और तरीका

नाथद्वारा दर्शन करने का स्थान बहुत ही संकरा है। इसलिए वैष्णवों को बारी बारी थोड़े थोड़े करके से दर्शन कराया जाता है। यूँ तो श्रीनाथजी के आठ दर्शन होते प्रतिदिन होते है। पर कभी – कभी विशेष तिथि और उत्सवो पर एक आध बढ़ भी जाते है।

आठ दर्शनों के नाम इस तरह है। (कोरोना काल की वजह से कुछ कम हो सकती जिसमे वैष्णवों को मंदिर में आने की अनुमति नहीं होगी )

1- मंगला

2- श्रृंगार

3- ग्वाल

4- राजभोग

5- उत्थान

6-  भोग

7-  संध्या आरती

8-  शयन

श्रीनाथजी मंदिर में दर्शन का समय – Shrinathji Darshan Timings (कोरोना काल की वजह से कुछ कम हो सकती जिसमे वैष्णवों को मंदिर में आने की अनुमति नहीं होगी )

S.no                            आरती                                 समय

01                          मंगला आरती                     05:45 AM  To 06:30 AM

02                       श्रृंगार आरती                     07:15 AM  To 07:45 AM

03                            ग्वाल आरती                     09:15 AM  To 09:30 AM

04                           राजभोग आरती                 11:15 AM  To 12:05 PM

05                           उथापन आरती                  03:45 PM  To 04:00 PM

06                            भोग आरती                     04:45 PM  To 05:00 PM

07                             आरती                           05:15 PM  To 06:00 PM

08                           शयन आरती                     06:15 PM  To 07:15 PM

नोट :- मंदिर में मोबाइल और कैमरा ले जाना मना है और किसी भी तरह से फोटो खींचना सख्त मना है।  

दोस्तों, उम्मीद है आपको ब्लॉग की जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी, अगर आपको भी किसी मंदिर या धर्म से जुडी कथा के बारे जानना है तो हमें जरूर बताये हम आपको पूरी पूरी जानकारी देने की कोशिश करेंगे। आप हमसे कमेंट बॉक्स या Email :- “gyanaxizweb@gmail.com” के सहारे संपर्क कर सकते है।

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