Ujjain Harsiddhi Temple: 51 शक्तिपीठों में से एक 2000 साल पुराना हरसिद्धि मंदिर की 7 ख़ास बातें

By | 1 February 2024
Ujjain Harsidhi Temple

महाकाल की नगरी में बना हरसिद्धि माता का मंदिर(Ujjain Harsiddhi Temple)। उज्जैन हरसिद्धि मंदिर करीब २००० साल पूराना है और हरसिद्धिदेवी का इतिहास भी बहुत ख़ास हैं। इस मंदिर में दर्शन मात्र से सभी दुखो का नाश होता हैं। महाकाल की नगरी की तो बात ही अलग हैं जहा महादेव हो वहाँ माता तो अवश्य विराजमान होती है लेकिन हरसिद्धि माता की स्थापना की कहानी ही अलग हैं जो हम आपको निचे बताएगे

Ujjain Harsiddhi Temple History : जानिए उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर का इतिहास

उज्जैन का हरसिद्धि माता का मंदिर(Ujjain Harsiddhi Temple) 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। जब माता पार्वती का विवाह भगवान शिव से हो गया तब उनके पिता राजा दक्ष बिलकुल भी कुछ नहीं थे। इसके चलते राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को निमंत्रण दिया। इसके बारे में जब माता पार्वती को पता चला तो वे पिता मोह में शंकर जी से जिद करने लगी की आप भी याग में चले पिताजी ने नहीं निमंत्रण भेजा तो कोई बात नहीं परन्तु महादेव ने वह जाने से खुद मन कर दिया और पार्वती माता से भी कहाँ वह ना जाये परन्तु माता ने प्रभु की बात नहीं मानी और जब माता पार्वती यज्ञ में पहुंची और देखती हैं की वह महादेव के बैठने का स्थान भी नहीं हैं जिससे उन्हें बहुत क्रोध आता हैं और वे अपने आप को यज्ञ की अग्नि में भष्म कर देती हैं।

जब महादेव को इस बारे में पता चलता है वे बहुत क्रोधित होते हैं और जलते हुए माता पार्वती के शरिर को ले कर पृथ्वी की परिक्रमा करने लग जाते हैं।

Ujjain Harsiddhi Temple: यहीं गिरी थी माता सती की कोहनी

भगवान विष्णु महादेव को इस तरह विरह में देख अपने सुदर्शन चक्र से माया पार्वती के शरीर के 51 टुकड़े कर देते हैं जो आज के समय 51 शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। कहा जाता हैं की माता पार्वती की कोहनी आ कर यहाँ गिरी थी।

Ujjain Harsiddhi Temple: 2000 साल पुराने हैं दीपक जलाने के लिए लगती हैं भक्तों की लाइन

हरसिद्धि माता उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थीं। हरसिद्धि माता मंदिर की एक महत्‍वपूर्ण ख़ास बात यहां की दीप मालाएं हैं, जो 2000 साल पुरानी हैं। ये दिप मालाएँ देखने में जितनी आकर्षित लगती हैं उनका ही इन दीपों में तेल और बाटी लगाना कठिन हैं। हरसिद्धि माता मंदिर के बाहर कुल 1011 दीप माला हैं जो 51 फीट ऊंची हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में जो भी श्रद्धालु ये दीप प्रज्वलित करने की मन्नता मांगता हैं उसका बड़े से बड़ा काम या कहे संकट दूर हो जाता हैं।

Ujjain Harsiddhi Temple: हरसिद्धि नाम कैसे पड़ा

उज्जैन में विराजित शक्तिपीठ का नाम हरसिद्धि कैसे पड़ा यह जानना बड़ा रोचक हैं चलिए जानते हैं

चण्ड और मुण्ड नाम के दो राक्षस बहुत आतंक मचा रहें थे। उनका आतंक दिनों दिन बढ़ता जा रहा था चारो तरफ अधर्म ही अधर्म था। फिर दोनों ने योजना बनाई की कैलाश पर कब्ज़ा करने की वे कैलाश पर्वत पहुंचे और देखते हैं की भगवान महादेव व माता पार्वती धुत क्रीड़ा में लीन थे। दोनों बिना आज्ञा के जबरजस्ती अंदर घुसने का प्रयास करने लगे द्वार पर नंदीगण परन्तु दोनों दैत्यों ने नंदीगण को शास्त्र से घायल कर दिया इस तथ्य की जानकारी जब महादेव को लगी तब उन्होंने चंडीदेवी का स्मरण किया चंडी देवी की आज्ञा प् तक्षण ने दोनों दैत्यों का वध कर दिया। और फिर महादेव को वध का व्याख्यान महादेव को सुनाया यह सुन महादेव ने कहा है चंडी अपने दुष्टो का वध किया इसीलिए आप लोकख्याति में हरसिद्धि के नाम से व्याख्यात होगी।

इस तरह महाकाल वन में हरसिद्धि माता विराजमान हुई तब से मनुष्यों की सभी विपदाओं को दूर कर रही हैं। इस कलयुग में माता की कृपा अनमोल हैं।

Ujjain Harsiddhi Temple: हरसिद्धि मंदिर के पीछे सिंदूर लगे सिर चढ़े हुए हैं।

महाकाल वन में स्थित हरसिद्धि मंदिर की मान्यता हैं चुकी महाराज विक्रमादित्य की आराध्य देवी हरसिद्धि माता हैं वे हर 12 साल में अपने हाथों से अपना सिर काट कर माता के आगे बलि देते थे। उन्होंने ऐसा 11 बार किया किन्तु हर बार सिर वापस आ जाता था परन्तु 12वी बार बलि देने गए विक्रमादित्य का सिर वापस नहीं आया ऐसे में राजा को अहसास हो गया था की अब उनका शासन समाप्त होने वाला है और आगे ऐसा ही हुआ। हालांकि उन्होंने 135 वर्ष शासन किया था।

Ujjain Harsiddhi Temple: उज्जैन की रक्षा के लिए देवियों का पहरा

उज्जैन महाकाल की नगरी के बारे में सभी को ज्ञात हैं की चारो तरफ देवियों का गेहरा हैं। मान्यता हैं की उज्जैन की रक्षा के लिए आस पास देवियों का पहरा रहता हैं। उन देवियों में हरसिद्धि माता का मंदिर भी आता हैं। हरसिद्धि मंदिर की ख़ासियत यह भी हैं की हरसिद्धि माता उज्जैन की रक्षा करती हैं। नवरात्री में करोड़ो भक्त दर्शन के लिए आते हैं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कहा जाता हैं यदि अपने महाकाल के दर्शन किये और माता हरसिद्धी के दर्शन नहीं किये तो आपको आधा ही पुण्य मिलता हैं इसीलिए जब भी महाकाल के दर्शन के लिए जाये हरसिद्धि माता के भी दर्शन करें।

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Harsiddhi Mata Mandir: ‘हरसिद्धि मां’ जिनकी श्री कृष्ण पूजा करते थे

शंखासुर नाम का दैत्य महादेव से आशीर्वाद पा कर लोगों पर अन्याय करने लगा सभी धर्म के कार्य रोक दिए जिससे सभी द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण की शरण में आए। उन्होंने शंखासुर से बचाने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण जानते थे कि जब भी असुरों और दैत्यों का आतंक बड़ा हैं माँ चंडी ने उनका खात्मा किया। तभी श्री कृष्ण ने प्राण लिया की वे सभी पटरानियों के साथ अपनी कुलदेवी ‘हरसिद्धि मां’ की विधिवत पूजाकरेंगे और पूजा संपन्न होने के बाद । मां प्रसन्न होकर बोली- क्या वरदान चाहते हो। श्री कृष्ण ने कहा कि मां मुझे शंखासुर का वध करना है। वह लोगों पर अत्याचार कर समुद्र पार चला जाता है।

मां ने कहा- “ठीक है तुम अपनी सेना लेकर आओ। मैं तुम्हारे बल्लम पर कोयल बन कर बैठूंगी।”

भगवान श्री कृष्ण अपनी 56 करोड़ यादवों के साथ समुद्र किनारे पहुंचे। मां हरसिद्धि देवी कोयल का रूप लेकर श्री कृष्ण के बल्लम पर बैठ गई। मां की कृपा से सारी सेना समुद्र पार हुई। श्री कृष्ण ने शंखासुर का वध किया।

द्वारका पुरी से 14 किलोमीटर दूर सौराष्ट्र के ओखा मंडल में मिलनपुर (मियाणी) गांव है, जहां श्री कृष्ण की कुलदेवी हरसिद्धि माता का मंदिर है। जिस जगह मां कोयल का रूप पकड़ कर श्री कृष्ण के बल्लम पर बैठी थी, उसे कोपला कहा जाता है। समुद्र के किनारे कोपला पहाड़ी पर हरसिद्धि मां का मंदिर है। कहते हैं जब भी किसी विदेशी आक्रांता का जहाज हिन्दुस्तान पर हमला करने के लिए वहां से गुजरता तो देवी उसे समुद्र में डुबो देती थी।

Ujjain Harsiddhi Temple उज्जैन के एक नहीं 2 शक्तिपीठ हैं : हरसिद्धि मंदिर और गढ़कालिका माता मंदिर

उज्जैन की पवित्रता के परिमाण इतिहास में कई मिले हैं महाकाल वन में हरिसिद्धि माता मंदिर एक शक्तिपीठ हैं जहा माता सती की दाहिनी कोहनी गिरी थी। दूसरा शक्तिपीठ माता गढ़कालिका ( Maa Gadkalika Mandir) का धाम जहा माता सती के ओष्ठ(होंठ) का अंग गिरा था। मान्यता हैं की शक्तिपीठ के दर्शनमात्र से मनुष्य के सभी दुखों का अंत होता हैं।

51 Shaktipeeth

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धन्यवाद

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