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इंदौर शहर जो अपनी स्वच्छता के लिए पुरे देश में जाना जाता हैं। लेकिन इसके इतर भी इंदौर की पहचान है मंदिरो की वजह से इंदौर में कई ऐसे मंदिर है जो चमत्कारी और अपने भक्तो के बिच काफी प्रसिद्ध है जैसे रणजीत हनुमान, अन्नपूर्णा मंदिर, बिजासन माता मंदिर, पुराना शनि मंदिर, गोवेर्धन नाथ मंदिर, काली मंदिर इसी मंदिरो के बीच 2 और नाम है जो अपने आप में अद्भुत और चमत्कारी माने जाते है खजराना गणेश मंदिर और बड़ा गणपति मंदिर। आज हम इस ब्लॉग के सहारे आपको दोनों मंदिरो की विशेषता बताएँगे।
Indore Famous Ganesh Temple
इंदौर शहर के प्रमुख मंदिर तो बहुत हैं लेकिन यदि गणेश मंदिरो की बात करें तो खजराना मंदिर और बड़ा गणपति मंदिर।
Indore Khajrana Mandir इंदौर खजराना गणेश मंदिर
इंदौर में स्थित खजराना गणेश मंदिर जिसके के चमत्कार की कहानी मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों में भी दूर – दूर तक फैली है। गणेश भक्तों की आस्था का प्रतिक माने जाने वाले इस मंदिर का चप्पा चप्पा भगवान श्री गणेश के चमत्कार का गवाह है लोगो को सृमृद्धि की दरकार हो या संतान की मनोकामना, नौकरी की पाने की इच्छा हो या विवाह की अभिलाषा, विद्या की प्रार्थना हो या बल – बुद्धि की आशा सभी भक्तो को इस मंदिर से वरदान मिल ही जाता है बस जरुरत है भक्त के सच्ची भक्ति की। भक्तों का इस चमत्कारी मंदिर के बारे में कहना है की इस मंदिर में स्वयंभू गणेशजी अपने भक्तों की हर मनोकामनाएँ पूरी कर देते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ण करने लिए भक्तों को यहां आकर गणेश जी पीछे दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाना होता है।
क्या है उल्टे स्वास्तिक का चमत्कार?
Khajrana Mandir Main Ulta Swastik Kyu bnaya jata hain .
इंदौर स्थित खजराना मंदिर में भक्त, भगवान गणेशजी के मंदिर के पीछे बानी दीवार या यूँ कहे गणेशजी की पीठ पर उल्टा स्वस्तिक बना देते है और जब भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है तो वह वहाँ दोबारा आकर सीधा स्वस्तिक बना देते हैं। कहा जाता है की इसका चलन कब शुरू हुआ और किसने किया ये किसी को नहीं पता मगर यह चलन यहाँ कई दशकों से चला आ रहा हैं। भक्तों का मानना है की इस मंदिर में जो भी उल्टा स्वस्तिक बनाकर मन्नत मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती हैं। एक और मान्यता यहाँ प्रचलन में है की मंदिर की तीन परिक्रमा लगाने के बाद अगर धागा बाँधा जाए तो भी भक्तों की इच्छाएं पूरी हो जाती है।
Indore Khajrana Temple History खजराना गणेश मंदिर का इतिहास
खजराना गणेश मंदिर का निर्माण लगभग 1735 में शासक अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था जो होलकर वंश की महान शासक थी। कहा जाता है कि भगवान श्री गणेश ने एक पंडित भक्त को सपने में मंदिर के निर्माण के लिए प्रेरणा दी और साथ ही उसे अपने जमींन दबे होने का सन्देश दिया। पंडित ने यह बात गॉंव के अन्य लोगो को बतायी जिससे ये बात महारानी अहिल्या बाई होल्कर तक पहुंच गयी, चूँकि अहिल्या बाई एक धार्मिक स्वभाव वाली महिला थी तो उन्होंने पंडित की बताई जगह पर खुदाई शुरू करवा दी। खुदाई के दौरान वहां से भगवान गणेश की वैसी ही मूर्ति निकली जैसी पंडित ने सपने में देखी थी। मूर्ति निकलने के बाद रानी अहिल्या बाई होलकर के कहने पर उसी जगह पर एक मंदिर बनाना आरम्भ हुआ जो जल्दी ही पूर्ण निर्मित हो गया
देश के सबसे अमीर गणेश मंदिरों में से एक
श्री गणेशजी के इस मंदिर की गिनती देश के सबसे अमीर गणेश मंदिरों में होती है। जब श्रद्धालू की मनोकामना पूरी होती है तो कई भक्त गुप्त दान के रूप में यहाँ सोना, चाँदी और कई तरह के आभूषण दे कर भगवान का धन्यवाद देते है। यूं तो हर दिन ही इस मंदिर में पूरे विधि और विधान के साथ गणेशजी का पूजन होता है। मगर बुधवार को भगवान श्री गणपति जी को विशेष तौर उनके पसंदीदा मोदक और लड्डूओं का प्रसाद चढ़ाया जाता है। गणेश चतुर्थी से लेकर पुरे 10 दिन यहां विशेष पूजन होता और इन 10 दिनों में लाखो भक्त अपने भगवान के दर्शन पा कर धन्य हो जाते है।
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बड़ा गणपति मंदिर
खजराना गणेश मंदिर (Indore Bada Ganpati Mandir) के बाद हम बात करते है। इंदौर के बड़ा गणपति जो अपने आप में अद्भुत चमत्कार का प्रतिक है। सिर्फ इंदौर ही नही बल्कि देश के कई राज्यों में इस मंदिर की प्रसिद्धी हैं। इसीलिए कई फ़िल्मी कलाकार और क्रिकेटर यहाँ आशीर्वाद लेने जरूर आते है विशेषतः जब वे इंदौर या इंदौर के आसपास हो। इस मंदिर का इतिहास भी खजराना गणेश मंदिर की तरह ही स्वप्न से जुड़ा हुआ है। तो चलिए जानते है बड़ा गणपति मंदिर का इतिहास।
बड़ा गणपति मंदिर का इतिहास
Indore Bada Ganpati Temple History
इंदौर के अनन्य भक्त स्वर्गीय पं. नारायण दाधीच के सपने में आकर भगवान श्री गणेश ने दर्शन दिए। भक्त उपर भगवान की कृपा होने से पंडितजी बहुत ही अभिभूत हुए और उन्होंने सदा अपने भगवान को इसी रूप में देखने की ठान ली और यह निश्चय किया की भगवान के उसी स्वरुप की प्रतिमा बनायीं जाएगी जिस रूप में उन्हें दर्शन हुए। आखिर 3 वर्षो के परिश्रम के बाद 17 जनवरी 1901 में पंडितजी के सपने में आये उसी रूप की मूर्ति का निर्माण पूरा हुआ। जिसमे प्रतिमा को बनाने में अनेको तीर्थो का जल, काशी, अयोध्या, अवंतिका और मथुरा से लायी गयी मिट्टी के साथ ही गौशाला, हाथीखाना, घुड़साल की मिट्टी और रत्नों में हीरा पन्ना, पुखराज, मोती, माणिक के साथ – साथ ईंट, चूना, बालू और मेथीदाने के मसाले का उपयोग किया गया। इस बड़ी प्रतिमा को बनाने के लिए अलग-अलग अष्ट धातुओं का प्रयोग भी किया गया है जैसे- गणपति के मुख के लिए सोना, चांदी, तथा कान, हाथ और सूंड के लिए तांबा का इस्तेमाल और पैरों के लिए लोहे के सरियों का उपयोग किया गया है।
एशिया की सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा।
मान्यता है की इस मूर्ति जितनी बड़ी गणेशजी की मूर्ति ( Asia’s Biggest Idol Of Ganesha) किसी भी मंदिर में नहीं है। यह एशिया की सबसे बड़ी मूर्ति है, 120 साल पुरानी इस मूर्ति की ऊंचाई 25 फिट है। जो शायद ही किसी और मंदिर में हो।
8 – 15 दिन लगते है चोला श्रृंगार में ।
मंदिर के पुजारी मुख्य पंडित प्रमोदजी दाधीच, राकेशजी दाधीच, राजेशजी दाधीच ने जानकारी दी है की भगवान गणेश जी के श्रृंगार में करीब करि 8 – 15 दिन का समय लग जाता है। चोले का श्रृंगार वर्ष में चार बार किया जाता है। जिसमें प्रमुख तिथियां है पहला तिथि “भाद्रपद सुदी चतुर्थी”, दूसरी तिथि “कार्तिक बदी चतुर्थी”, तीसरी तिथि “माघ बदी चतुर्थी” और चौथी तिथि “बैशाख सुदी चतुर्थी” पर चोला और बहुत ही सुंदर वस्त्रों से श्रृंगार भगवान गणपति को किया जाता है। चोले चढाने की सामग्री में सवा मन घी और सिंदूर का इस्तेमाल किया जाता है। मंदिर के रख-रखाव और देख रेख की पूर्ण जिम्मेदारी स्व. प. नारायण दाधीच की तीसरी पीढ़ी के पं. श्री धनेश्वर दाधीच के सुपुर्द हैं।
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