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History of Tirupati Balaji Mandir/तिरुपति बालाजी के रहस्य।
हमारे देश में ऐसे कई मंदिर है जो हमेशा से ही लोगो को अपनी ओर आकर्षित करते है। इन मंदिरों की अद्भुत कहानीयां और रहस्यमयी गाथाएँ सदियों से लोगो को हैरान होने पर मजबूर कर रही हैं। आज हम देश के एक ऐसे मंदिर के रहस्यों को लेकर आये है जिसे देश के सबसे अमीर मंदिर का दर्जा प्राप्त हैं। जी हाँ हम बात कर रहे है तिरुपति बालाजी मंदिर जो न केवल भारत बल्कि पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। ये मंदिर भारतीय वास्तु कला और शिल्प कला का उत्कृष्ट नमूना है। आंध्र प्रदेश एक जिले चित्तूर में स्थित तिरुपति बालाजी का यह मंदिर भारत के मुख्य तीर्थ स्थलो में से एक है।
विश्वभर में प्रसिद्ध इस मंदिर का वास्तविक नाम है श्री वेंकेटेश्वर मंदिर क्यों की यहां पर भगवान वेंकेटेश्वर विराजित हैं जो स्वयं भगवान श्री हरी विष्णु ही हैं। यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की जिस सातवीं चोटी पर स्थित है उसे वेंकटचला के नाम से जाना जाता है, यहाँ के लोगो की ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री हरी ही वेंकट पहाड़ी के स्वामि होने के कारण भगवान श्री हरी विष्णु को श्री वेंकेटेश्वर कहा गया है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की शिल्प कला तो अद्भुत है ही मगर इसके साथ ही इस मंदिर के कुछ ऐसे आश्चर्यजनक तथ्य और रहस्य हैं जो आप जानकर आश्चर्यचिकत रह जाएंगे। आप खुद ही भगवान तिरुपति बालाजी के दर्शन रहस्य को सामने जाकर देखने लिए इच्छुक हो जाएंगे।
भगवान के विग्रह की स्थिति
जब व्यक्ति मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करता हैं तो उसको ऐसे लगेगा कि जैसे भगवान श्री वेंकेटेश्वर का विग्रह गर्भ गृह के मध्य में स्थित है। लेकिन जैसे ही व्यक्ति गर्भगृह से बाहर आ जायेगा तो आश्चर्यचकित रह जाएंगे क्यों की गर्भगृह से बाहर आकर भगवान की प्रतिमा दाहिनी ओर स्थित दिखती है।
नीचे धोती और ऊपर साड़ी
स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाने की परंपरा यहाँ इसलिए है की माना जाता है कि भगवान के इस रूप में माता लक्ष्मी जी भी समाहित हैं।
बालाजी की विग्रह को आता है पसीना
मंदिर में स्थित बालाजी के विग्रह को देखकर उसका प्रति आकर्षित होना लाजमी है क्यों की ये एक विशेष तरह के पत्थर से बनी हुई है. पर ये इतनी जीवित लगती है की दर्शन करने के समय ऐसा लगता है प्रतीत होता है जैसे वेंकटेश्वरा स्वयं ही हमारे सामने विराजित हैं। पुजारियों के द्वारा ऐसा देखा गया है कि बालाजी विग्रह को पसीना भी आता है, श्री विग्रह पर कई बार पसीने की बूंदें देखी जा सकती हैं. इसलिए मंदिर के तापमान हमेशा कम रखा जाता है।
बालाजी का अनोखा गांव
वेंकेटेश्वर स्वामी मंदिर से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर एक स्थित ऐसा गांव है, जहां गांव वालों के अलावा किसी भी बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं मिलता। यहां के लोग बहुत ही रीती – नियमो का पालन करते हुए रहते हैं। मंदिर में भगवान अर्पित होने वाले सारे प्रसाद की सामग्री जैसे की फूल – फल, दही, घी, दूध, मक्खन बाकी सभी चीज़े भी इसी गांव से आते हैं।
गुरुवार को चन्दन लेप का चमत्कार
हर गुरुवार को प्रभु को चन्दन का लेप लगाने के बाद अद्भुत रहस्य सामने आता है, भगवान बालाजी को स्नान कराने के बाद चंदन का लेप लगाया जाता है और यह लेप जब हटाया जाता है तो चमत्कारी रूप बालाजी के हृदय में माँ लक्ष्मी जी की अद्भुत आकृति दिखाई देती है।
मंदिर में ये दीया कभी नहीं बुझता
इस मंदिर में एक दीप हमेशा ही जलता रहता है और इसकी आश्चर्यजनक बात यह है कि इस दीये में ना तो कभी तेल या ना ही कभी घी डाला जाता फिर भी यह जलता रहता है और एक ख़ास बात यह भी एक है की आज तक किसी को नहीं पता की इसे सबसे पहले किसने प्रज्वलित किया था।
पचाई कपूर
भगवान वेंकेटेश्वर के विग्रह पर पचाई कपूर लगायी जाती है. इस कपूर की खासियत यह हैं कि ये किसी भी तरह के पत्थर पर लगाने बाद कुछ ही समय में उस पत्थर में दरारे पड जाती है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है की आज तक बालाजी की विग्रह पर इस पचाई कपूर का कोई प्रभाव नहीं आया।
असली है बालाजी के केश
यहाँ ऐसे माना जाता है की भगवान के केश असली हैं और कभी भी उलझते नहीं और हमेशा मुलायम ही रहते हैं। ये एक आश्चर्यजनक बात यह है की कैसे एक विग्रह पर लगे बाल असली हो सकते हैं?
मंदिर में रखी एक अद्भुत छड़ी
मंदिर में दाहिने ओर रखी गयी छड़ी वही है जिससे कभी भगवान को मार पड़ी थी और इसी के कारण उनकी ठुड्डी में चोट लग गयी थी। इसी वजह से उनकी ठुड्डी पर रोज चन्दन का लेप लगाया जाता है।
प्रतिमा से आती है लहरों की ध्वनि
मान्यता यह भी है की यही कोई व्यक्ति भगवान वेंकेटेश्वर की प्रतिमा पर कान लगाकर सुनता है तो समुद्र की लहरों सी आवाज़ सुनाई देती है। संभवतः इसीलिए भगवान की प्रतिमा पर हमेशा नमी रहती है।
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