Nag Panchami 2023 Date कब है नाग पंचमी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

By | 28 July 2023
Nag Panchami Date

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Nag Panchami 2023

सावन का महीना बहुत ही पवित्र होता है। इस माह में नाग पंचमी का मनायी जाती है।  इस दिन विशेष रूप से नाग देवता को पूजा जाता है। आज हम आपको इस ब्लॉग में बताएँगे की नाग पंचमी कब है और इसके पूजन का शुभ मुहूर्त कब है और पूजा विधि क्या होती हैं। 

सावन महीना भगवान का बहुत ही प्रिय महीना है, इस महीने में भगवान शिव और शिवपरिवार की पूजा अर्चना की जाती है। हमारे पंचांग के अनुसार, इस पवित्र सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही नागपंचमी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन खास तौर पर नाग देवता का बड़े ही विधि और विधान के साथ  पूजा अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु की सेवा में शेषनाग होते है तो शिव के गले में नागराज वासुकि लिपटे रहते हैं। Nag Panchami 2023 में दो नाग पंचमी आ रही है एक 7 अगस्त को जो केवल राजस्थान , बिहार एवं झारखण्ड में मनाई जाएगी। शुक्ल पक्ष की नाग पंचमी 21 अगस्त को आ रही हैं इसी दिन इसे देश भर में मनाई जायगी।

30 जून 2023 अपडेट :- नाग पंचमी शुभ मुहूर्त , पूजा विधि इस आर्टिकल में दि गयी हैं। और भी कुछ यदि आप जानना चाहते हैं तो ज्ञान एक्सिस के साथ बने रहिये।

Nag Panchami 2023 Muhurat नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त कब से प्रारंभ होगा . . . 

नाग पंचमी शुभ तिथि का प्रारंभ : – 7 July 2023 को सुबह 3 बजकर 30 मिनट से मध्यरात्रि 12 बजकर 18 मिनट को समाप्त होगी।

21 अगस्त नाग पंचमी की शुभ तिथि का प्रारंभ : – 20 अगस्त को रात 12 बजकर 23 मिनट से 21 तारीख को रात में 2 बजकर 1 मिनट पर समाप्त होगी।

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नाग पंचमी का महत्व / नाग पंचमी का महत्व क्या हैं।  . . .  

नाग पंचमी के दिन लोग समृद्धि पाने के लिए भगवान शिव के साथ विशेष रूप से नाग देवता पूजा की जाती है। कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नाग देवता माता लक्ष्मी की सभी दिशाओ से रक्षा करते हैं. इस दिन नाग देवता की पवित्र मन और विधि- विधान से पूजा करने पर मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प दोष होता है तो उस व्यक्ति को कालसर्प दोष से बचने के लिए नाग पचंमी का व्रत जरूर ही करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति को सपने में अधिक सांप दिखते से परेशान हैं तो नागपंचमी के दिन उसे विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए। इससे उसे सांपों के भय  से मुक्ति मिलती है। नाग पंचमी के दिन नाग देवता को दूध अर्पित किया जाता है। हमारे धार्मिक शास्त्रों और पुराणों के अनुसार इस दिन से 12 नागों विशेष रूप से पूजा की जाती है.

नाग पंचमी की पूजन की विधि / नाग पंचमी की पूजा कैसे करे। 

नाग पंचमी की तिथि की शुरुआत माह की चतुर्थी के दिन से ही हो जाती है। इस दिन व्यक्ति को सिर्फ एक ही समय का भोजन चाहिए। अगले दिन नाग पंचमी को प्रातः जल्दी ब्रम्हा महूर्त में उठकर स्नान करें। इसके बाद  घर की पूजा की चौकी पर नाग देवता की फोटो या मूर्ति रखना चाहिए। उसके बाद हल्दी, दूध, फूल और रोली आदि वस्तुएँ चढ़ाना चाहिए। समस्त पूजन के बाद नाग देवता की आरती उतारनी चाहीऐ।  व्रत करने वाले व्यक्ति को  नाग पंचमी की कथा जरूर सुननी चाहिए। 

Naag Oanchmi ki katha

प्राचीन काल में एक नगर में एक बहुत ही धनवान सेठजी थे रहते थे। जिनके सात पुत्र हुए। सातों ही पुत्रों की शादी हो चुकी थी। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी उत्तम  चरित्र की थी, पर उनका एक भी भाई नहीं था। एक दिन घर की सबसे बड़ी बहू ने घर लीपने और पोतने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं से साथ चलने के लिए कहा, उनके बहुएं सभी धलिया और खुरपी लेकर एक जगह की मिट्टी खोदना शुरू कर दिया। तभी वहां एक विशाल नाग निकला, जिसे देखकर बड़ी बहू घबराकर खुरपी से उसे मारने की कोशिश करने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे नहीं मारने को कहा और उसे मारने से रोक लिया।

यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे बिना मारे ही छोड़ दिया मारा। कुछ दूर जाकर नाग एक ओर जाकर बैठ गया। तब चुपचाप से छोटी बहू नाग के पास जाकर बोली 

 -‘मैं अभी फिर लौट कर आती हैं तुम यहां से कहीं मत जाना। यह कहकर वह सबके साथ वापस घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर नाग से किया वादा भूल गई।

जब छोटी बहू को एक दिन बाद दिन वह बात याद आई तो वह बिना किसी को बताये  नाग के पास पहुंची और नाग को उसी जगह पर बैठा देख बोली – भैया नमस्कार! नाग ने कहा- ‘अब तू मुझे भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे मांफ कर देता हूं, नहीं तो झूठी बोलने के कारण तुझे डस लेता। वह बोली – भैया मुझसे भूल हो गई, आपसे क्षमा मांगती हूँ, नाग बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहन है और मैं तेरा भाई बन गया हूँ। तुझे जो भी मांगना हो, मुझसे मांग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई भी भाई नहीं है, अच्छा हुआ जो आप मेरे भाई बन गये और मुझे अब कुछ नहीं चाहिए।

कुछ समय बीतने पर वह नाग इंसान का रूप लेकर उसके घर आया और बोला कि ‘मेरी बहन को मेरे साथ भेज दो।’ सब हैरान हो गए क्योंकि सभी यही जानते थे कि ‘बहु का तो कोई भाई नहीं है, तो नाग बोला-  मैं इसका चचेरा भाई हूं, बचपन से ही मैं बाहर चला गया था। ऐसा सुनकर ससुराल वालो ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि ‘बहन मैं वही नाग हूं जिसे तूने उस दिन भाई बनाया था, इसलिए तू डरना नहीं और जहां तुझे कुछ कठिनाई हो वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना। छोटी बहू उसकी बात मानते मानते  उसके घर तक पहुंच गई। वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर छोटी बहु चकित हो गई।

एक दिन की बात हैं नाग की माता को कुछ काम था तो उन्होंने कहा- ‘मैं किसी काम से कुछ समय के लिए घर से बाहर जा रही हूँ, तू तेरे भाई को दूध ठंडा कर के जरूर पिला देना। लेकिन छोटी बहू ये बात भूल गयी और उसने गलती से नाग को थोड़ा ज्यादा गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुँह बुरी तरह जल गया। यह देखकर नाग की माता बहुत गुस्सा हो गयी। पर नाग के समझाने पर उनका गुस्सा शांत हो गई। तब नाग ने कहा कि बहुत दिन हुए बहन को अब उसके ससुराल भेज देना चाहिए। तब नाग और उसके माता – पिता ने उसे कई तरह के गहने, चांदी, सोना और कई तरह के जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके वापस उसके ससुराल पहुंचा दिया।

इतने सारे स्वर्ण आभूषण देखकर देखकर बड़ी बहू को बहुत जलन होती है और छोटी बहु को कहती है – तेरा भाई तो बड़ा धनी है, तुझे तो उनसे और भी आभूषण और धन लाना चाहिए। नाग ने यह वचन सुना तो अपनी बहन के खातिर सभी वस्तुएं सोने की बनाली और उसे लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- ‘मुझे तो लगता है की घर झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए’। तब नाग ने झाडू भी सोने की बना कर रख दी।

नाग ने अपनी इस बहन को हीरों और मणियों से बना का एक अद्भुत और विचित्र हार दिया था। उसकी तारीफ़ उनके राज्य की रानी तक भी पहुंच गयी और वह राजा से बोली कि – सेठ की छोटी बहू का हार मुझे चाहिए किसी भी तरह से। ’राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि उससे वह किसी भी मूल्य पर लेकर आओ। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि राजा ने किसी भी मूल्य पर वह हार मंगवाया है क्यों की महारानीजी को अब आपको बहू का हार पहनना चाहती उन्हें वह बहुत पसंद आया है, तो वह आप उनसे लेकर अभी ही मुझे दे दो’। सेठजी ने डरकर कर छोटी बहू से हार मंगवाकर दे दिया।

छोटी बहू को यह बात बहुत बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी और उसने अपने भाई को मन ही मन बहुत याद किया और आने की प्रार्थना की – भैया ! महारानी ने मुझसे मेरा  हार जबरदस्ती छीन लिया है, आपके द्वारा दिया गया हार मुझे बहुत प्रिय है आप कुछ ऐसा करे कि जब वह हार रानी गले पहनाया जाए, तब तक के लिए वह हार सर्प रूपी दिखने लगे और जब वह मुझे फिर लौटा दे तब फिर से वह वैसा ही अतभुत हार बन जाये जैसा पहले था। नाग ने उस हार के साथ बिलकुल ही अद्भुत चमत्कार करना शुरू कर कर दिया। जैसे ही महारानी ने वह हार पहनती, वैसे ही वह सर्प रूपी बन जाता। यह देखकर रानी डर कर जोर चीख पड़ी और डर कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।

रानी की बातें सुनकर राजा ने उस सेठ को बुलाकर कहा की आप आपकी छोटी बहू लेकर आये। सेठजी डर के मारे सोच में पड गए कि राजा न जाने अब क्या करेगा? वे घर जाकर छोटी बहू और बेटे को समझाकर उनके साथ फिर राजभवन उपस्थित हुआ। राजा ने छोटी बहू से कहा – तुमने क्या जादू टोना किया है, मैं तुम्हे इसी समय दंड दूंगा। छोटी बहू बोली- हे महाराज ! कृपया आप मुझे क्षमा कर दीजिये, किन्तु यह अपनी तरह का एकलौता हार है जो मेरे भाई ने मुझे उपहार स्वरुप भेंट किया है इसकी अद्भुतता ही ऐसी है कि मेरे गले में आते ही हीरों और मणियों का बन जाता है और किसी और के गले में पहनते ही सर्प सा बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प रूपी हार उसे देकर कहा- तुम अपनी बात की सच्चाई बताओ और मुझे अभी ही पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही वह सर्प रूपी  हार पहना वैसे ही फिर से हीरों-मणियों का हो गया।

यह देखकर राजा छोटी बहु की बातों का विश्वास हो गया और उसे उसका भाग्य समझ उसे वापस दे दिया तथा अपनी भूल को सुधारने के लिए उसे ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार के तौर पर दी। छोटी बहू फिर अपने  घर लौट आई। उसके पास स्वर्ण मुद्राये देखकर बड़ी बहू को फिर से ईर्ष्या हुई और उसने बाकी सभी बहुओं और घर के पुरुषों भड़काना शुरू कर दिया हुए सभी को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है पता नहीं वह कहा से लाती है और किस से लाती है। यह सुनकर छोटी बहु के पति ने अपनी पत्नी से पूछा कि आज मुझे तू सत्य बता यह धन तु कहा से लाती है और कौन देता है? वह दुखी होकर अपने भाई को याद करती है अपनी बहन को परेशान जानकर वह तुरंत ही उपस्थित हो जाता हैं और सारी बातें सुनकर गुस्से में विशाल नाग का रूप धारण करने लगता और फुँकारते हुए कहता हैं की – ये सारी स्वर्ण और रत्न जड़ीत वस्तुए और धन तथा मुद्राएं मुझसे ही मेरी प्रिय बहन तक पहुँचती है और अब जो भी मेरी प्रिय बहन के चरित्र पर संदेह करेगा मैं उसे अवश्य ही खा लूंगा। यहाँ दृश्य देख कर छोटी बहु चिंतित होते हुए कहती है भाई आप शांत हो जाए और सभी छोटी बहु से माफ़ी मांगते है। अपनी प्रिय बहन को डरा देख नाग तुरंत ही फिर मनुष्य रूप ले कर कहता की बहन तेरा निच्छल प्रेम और विश्वास के कारण ही तू मुझे इतनी प्रिय है अतः आज से जो भी स्त्री मुझमे निच्छल प्रेम और विश्वास दिखाएगी मैं उसमे तुझे देख कर उसकी सभी तरह से सहायता और रक्षा करूँगा। ऐसी मान्यता है कि वह दिन ही नागपंचमी के त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा और स्त्रियां नाग अपना भाई मानकर उसका बड़े ही विश्वास ले साथ पूजन करती हैं।

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