जानिए प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिको के बारे में इनमे से एक को तो खगोल शास्त्रा का पिता तक कहा जाता हैं

Top Indian Scientist and invention

दोस्तो आप जानते है की भारत देश हमेशा से एक ज्ञान, विज्ञान के रहस्यों और उसके वैज्ञानिको द्वारा की गयी बहुत ही अनोखी खोजो के लिए जाना जाता है। मेरा भारत महान कहने से ये महान नही बना ये बना है ये महान बना है अपने विशाल भूमि से जन्मे हुए ज्ञान, विज्ञानं और दर्शनशास्त्र के लिए ये महान बना है इसमें पैदा हुए महान आचार्यो और वैज्ञानिको के वजह से।
इसरो ने मंगल गृह पर पहले ही प्रयास में यान पहुंचाया, इसरो एक मात्र ऐसा संस्थान जिसने दूसरे देशो के 100 से अधिक उपग्रहों’को अंतरिक्ष तक सफलता के साथ पहुंचाया।
आयुर्वेदा पद्दति से आज दुनिया स्वाथ्य के क्षेत्र में नए आयाम प्राप्त कर रही हैं। कोरोना काल में लोगो ने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए काढ़ो का इस्तेमाल किया जो एक छोटा सा उदाहरण है आयुर्वेदा का।
आज लोग वैदिक गणित को सीखने और उसका उपयोग कर रहे है वैदिक गणित गणना की ऐसी पद्धति है, जिससे जटिल अंकगणितीय गणनाएं अत्यंत ही सरल, सहज व त्वरित संभव हैं।
ऐसे हज़ारो खोजो और ज्ञान के भण्डार को लिए भारत देश के गौरवमयी इतिहास के महान प्राचीन वैज्ञानिको के बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताएँगे।


आर्यभट्ट :- खगोलशास्त्र के पिता (The Father of Astronomy)

 

  • आर्यभट्ट पांचवीं सदी के महान गणितज्ञ (Mathematician), खगोलशास्त्री (Astronomer), ज्योतिषी (Astrologer) और भौतिक विज्ञानी (physicist) थे।
  • भारत देश के इस महान वैज्ञानिक ने मात्र 23 वर्ष की उम्र में आर्यभट्टिया (Aryabhattiya) की रचना की, जो उस समय के गणित का सार है।
  • आर्यभट्ट ने ही सबसे पहले पाई (pi) का मान 3.1416 निकाला था।
    आर्यभट्ट ने ही इस दुनिया को बताया कि शून्य (Zero) सिर्फ अंक नहीं बल्कि एक प्रतीक और अवधारणा (concept) है। वास्तव में शून्य का आविष्कार ही एक ऐसी खोज थी जिसने आर्यभट्ट को पृथ्वी और चंद्रमा के बीच सटीक दूरी पता लगाने में सफल और सक्षम बनाया था और शून्य की खोज से नकारात्मक अंकों (Negative Numbers) के नए आयाम (Dimensions) सामने आए।
  • इसके अलावा आर्यभट्ट ने विज्ञान के क्षेत्र में, खास तौर पर खगोलशास्त्र (Astronomy) में बहुत योगदान दिया और इस वजह से खगोलशास्त्र के पिता (The Father of Astronomy) के तौर पर जाने जाते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि (Ancient India) प्राचीन भारत में, खोगलशास्त्र विज्ञान (Astronomy) बहुत उन्नत था। खगोल नालंदा में आर्यभट्ट ने पढ़ाई की थी, जो नालंदा में बना प्रसिद्ध खगोल वेधशाला था।
  • आर्यभट्ट ने ही लोकप्रिय मत – हमारा ग्रह पृथ्वी ‘अचल’ यानि अगतिमान है, को भी खारिज कर दिया था। आर्यभट्ट ने अपने सिद्धांत में कहाँ कि ‘पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर परिक्रमा करती है।’ (“The Earth is round and revolves on its axis.”)
  • आर्यभट्ट ने ही सूर्य का पूर्व से पश्चिम की ओर जाते दिखने की बात को भी एक उदाहरण के माध्यम से गलत साबित किया। उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे जब कोई मनुष्य नाव से यात्रा करता है, तो तट पर लगे पेड़ दूसरी दिशा में चलते हुए दिखाई पड़ते हैं।
  • सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की वैज्ञानिक तौर पर व्याख्या भी आर्यभट्ट ने ही की थी।
    तो दोस्तों अब तो आपको समझ आया होगा की हमारे देश के द्वारा भजे गए पहले उपग्रह का नाम आर्यभट्ट क्यों रखा गया।
    ये कुछ जानकारी भारत के महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट के बारे, हम कोशिश करेंगे की आर्यभट्ट के बारे में आपको विस्तृत जानकारी दे, उनके द्धारा किये गए आविष्कारों का मूल्यांकन करना कठिन कार्य है फिर भी आपको उनके बारे में और अधिक जानकारी कुछ दिनों में अन्य आर्टिकल में देंगे।   

महावीराचार्य

 

  • क्या यह बात बहुत ही अदभुत नहीं है कि जैन साहित्य में गणित का विस्तृत वर्णन मिलता है। (500 ई.पू. – 100 ई.पू.) ।
  • जैन गुरू द्विघात समीकरणों (Quadratic Equations) को हल करना जानते थे। इन्होने बहुत रोचक तरीके से से भिन्न, बीजगणितीय समीकरण (Algebraic calculation), श्रृंखला सेट सिद्धांत (serial set theory), लघुगणक (logarithm) और घातांकों (Exponent) का भी वर्णन किया है।
  • महावीराचार्य 8वीं सदी के भारतीय गणितज्ञ (Mathematician) थे। महावीराचार्य ने ही बताया था कि नकारात्मक अंक (Negative Numbers) का वर्गमूल (square root) नहीं होता।
  • महावीराचार्य ने 850 ई.वीं में “गणित सार संग्रह” की रचना की थी। वर्तमान समय में अंकगणित (Arithmetic) पर लिखा गया यह पहला पाठ्य पुस्तक है। पवालुरी संगन्ना ने “सार संग्रह गणितम” नाम से तेलुगु भाषा में इसका अनुवाद किया था।
  • महावीराचार्य ने दी गई संख्याओं का लघुत्तम समापवर्त (LCM – Least Common Multiple) निकालने का तरीका भी बताया था।
    FACT :- दुनिया के लिए जॉन नेपियर ने एलसीएम (LCM) को हल करने का तरीका बताया लेकिन सत्य और प्रामाणिक बात तो यह है की भारतीय इसे पहले से ही जानते थे।
  • महावीराचार्य ने अंकगणितीय अनुक्रम के वर्ग की श्रृंखला के जोड़ (sum of series of squares of arithmetic sequence) और दीर्घवृत्त (ellipse) के क्षेत्रफल एवं परिधि (Circumference) के लिए प्रयोगसिद्ध किये गए नियम भी दिए। राष्ट्रकूट के महान राजा अमोघवर्षा नरुपतुंगा ने इन्हें अपने राज्य संरक्षण दिया था।
  • अद्भुत बात यह है कि अपने समय में महावीराचार्य ने समभुज (Equilateral), समद्विबाहु त्रिकोण (Isosceles triangle), विषमकोण (rhombus), वृत्त (circle) और अर्द्धवृत्त (Semicircle) के कुछ नियम बताए थे और साथ ही चक्रीय चतुर्भुज (Cyclic Quadrilateral) के किनारों और विकर्ण (Diagonal) के लिए समीकरण (equation) भी दिये थे |

    वराहमिहिर

  • वराहमिहिर ने जल विज्ञान (Hydrology), भूविज्ञान (Geology), गणित(Mathematics) और पारिस्थितिकी (Ecology) के क्षेत्र में महान योगदान दिए।
  • वराहमिहिर ही दुनिया के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने दावा किया था कि दीमक (Termite : – insects that destroy wood) और पौधे भूमिगत जल (underground Water) की उपस्थिति के संकेतक हो सकते हैं। दरअसल वराहमिहिर दीमकों के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी यह दी कि दीमक अपने घर की नमी (humidity) बनाए रखने के लिए पानी लाने का कार्य काफी गहराई में पानी के स्तर की सतह तक चले जाते हैं।
  • वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता में ही “भूकंप बादल सिद्धांत” का उल्लेख मिलता हैं जिसने समस्त वैज्ञानिक जगत को अपनी ओर आकर्षित किया था।
  • वराहमिहिर, महाराजा विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों में से एक भी थे।
  • राजा विक्रमादित्य ने उन्हें ‘वराह’ की उपाधि से सम्मानित किया था, क्यों की वराहमिहिर द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियां उतनी ही सटीक होती थीं।
  • वराहमिहिर के ज्ञान और विज्ञान की परिकल्पना आप इसी बात से लगा सकते है की दुनिया इतिहास में सबसे पहली बार वराहमिहिर ने ही दावा किया था कि कोई “बल (Force)” है जो गोलाकार (circular) पृथ्वी के वस्तुओं को आपस में जोड़े रखता है। और अब इसे गुरुत्वाकर्षण (Gravity) कहते हैं।
  • वराहमिहिर ने ही सबसे पहले यह भी कहा था कि चंद्रमा और ग्रह सूर्य की रौशनी की वजह से चमकते उनकी खुद की रौशनी से नहीं होती।
  • वराहमिहिर के गणितीय कार्य (Mathematical Operation) में त्रिकोणमितीय सूत्रों (Trigonometric Formulas) की खोज भी की थी। इसके अलावा, वराहमिहिर ही पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने एक ऐसे संस्करण (Edition) की खोज की थी जिसे आज की तारीख में पास्कल का त्रिकोण (Pascal’s triangle) कहा जाता है। ये द्विपद गुणांक (Binomial Coefficient) की गणना किया करते थे।
    फैक्ट :- दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि आज से लगभग 1500 वर्ष से भी पूर्व वराहमिहिर मंगल ग्रह पर पानी की खोज किए जाने की भविष्यवाणी की थी…

    चरक

  • चरकसंहिता में आचार्य चरक ने 10,00,000 जड़ी बूटी वाले पौधों का बहुत ही अच्छे तरीके से वर्णन किया है।
  • आचार्य चरक ही ने ही बताया भोजन एवं गतिविधि का दिमाग और शरीर पर प्रभाव का वर्णन किया।
  • आचार्य चरक ने आध्यात्मिकता और शारीरिक स्वाथ्य के बीच सम्बन्धो को साबित किया और कई तरह की बिमारी का इलाज़ कर दिखाया।
  • आचार्य चरक ही थे जिन्होंने सबसे पहले डाक्टर लिए शपथ के लिए एक नैतिक शपथ पत्र निर्धारित किया।
  • आचार्य चरक को प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान का पिता कहा जाता है। महान राजा कनिष्क के दरबार में चरक राज वैद्य (शाही डॉक्टर) थे।
  • आचार्य चरक की चिकित्सा पर लिखी एक किताब है चरक संहिता। इसमें चरक ने कई रोगों के विभिन्न स्पष्टीकरण के साथ उनके कारणों की पहचान और उपचार के अनेक तरीके बताए हैं।
  • आचार्य चरक ने ही सबसे पहले पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताया था।
  • आचार्य चरक आनुवंशिकी (Genetics) की मूल बातें भी पता थीं।
    शायद आपको जानकार आपको भी आश्चर्य लग रहा होगा की इतने प्राचीन काल में भी भारतीय चिकित्सा कितनी उन्नत थी।

    महर्षि पतंजलि

  • महर्षि पतंजलि को योग के पिता के तौर पर भी जाना जाता है। महर्षि पतंजलि ने योग के 195 सूत्रों का संकलन किया था।
  • योग को सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने वाले महर्षि पतंजलि पहले व्यक्ति थे।
  • महर्षि पतंजलि के योग सूत्र में, ओम (ॐ) को भगवान के प्रतीक के तौर पर बोला जाता है। महर्षि पतंजलि ने ॐ को लौकिक ध्वनि बताया था।
  • महर्षि पतंजलि चिकित्सा पर किए काम को एक पुस्तक में संकलित किया और ऋषि पाणिनी के व्याकरण पर पतंजलि के काम को महाभाष्य के नाम से भी जाना जाता है।
  • पतंजलि की जीव समाधि तिरुपट्टूर ब्रह्मपुरेश्वर मंदिर में है।

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