दोस्तों, हिंदू धर्म अपनी महान और अद्भुत परंपरा के वजह से हज़ारो सालों से एक रहस्य के लिए जाना जाता है। इसमें देवताओ, गन्धर्व, किन्नर, यक्ष आदि सभी की पूजा होती हैं। इसी तरह हमारे धर्म में हज़ारों सालों से नागों की पूजा करने की परंपरा आज तक निभाई जा रही है। कुछ लोग सर्प दोष के डर से तो कुछ अपनी भक्ति के लिए नागों की पूजा करते है। नागों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है की वह हमारे भगवान के आभूषण के लिए भी जाने जाते हैं।
हमारे देश में नागों के अनेक और कई अद्भुत मंदिर हैं, इन्हीं में से एक विश्व प्रसिध्द मंदिर है उज्जैन स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर का। यह मंदिर भगवान महाकाल के प्रसिध्द उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इस मंदिर की खास और मुख्य बात यह है कि इस मंदिर को सालभर में सिर्फ एक ही बार वह भी नागपंचमी के दिन अर्थात “श्रावण शुक्ल पंचमी” पर ही भक्तों के लिए के लिए खोला जाता है। यहाँ की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में नाग राज तक्षक स्वयं विराजमान है और उन्हें ज्यादा परेशानी न हो इसलिए इसे साल में सिर्फ एक दिन 24 घंटो के लिए ही खोला जाता हैं। कुछ लोगों यह भी मानते है की नागराज तक्षक इस दिन के लिए मंदिर में स्वयं आते हैं और कुछ भक्तो को दर्शन देते हैं।
लोगों और जानकारों द्वारा कहा जाता है कि यह मूर्ति अपनी तरह की एक ही मूर्ति है। दुनिया में कही भी ऐसी मूर्ति नहीं है और न ही आज तक किसी ने इस तरह की मूर्ति बनायीं हैं । भगवान नागचंद्रेश्वर की इस मूर्ति को नेपाल से उज्जैन लाया गया था। भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर की ये मूर्ति लगभग 11वीं शताब्दी की या उससे कुछ पुरानी हो सकती है। इसमें फन फैलाए एक विशाल नाग के आसन पर भगवान शिव और माता पार्वती बैठे हैं। लोगों की मान्यताएं तो यहां तक हैं कि पूरी दुनिया में यही एक ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान श्री हरि विष्णु की जगह भगवान महादेव सर्प की शय्या पर विराजित हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर महादेवजी, भगवान श्री गणेश और माता पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजमान हैं। यह मूर्ति हमारे लिए शिव-शक्ति का साकार रूप है।
नागराज तक्षक ने भगवान भोलेनाथ को मनाने के लिए घन घोर तपस्या की थी। तपस्या से महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने नागो के राजा तक्षक नाग को अमर होने का वरदान दिया। मान्यता है कि तब से नागराज तक्षक ने भगवान महादेव के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया ।
यह मंदिर तो काफी पुराना और प्राचीन है। लेकिन लोगो और इतिहासविदों का यह मानना है कि परमार वंश के राजा भोज ने लगभग 1050 ईस्वी के आसपास इस मंदिर का निर्माण कार्य करवाया था। उसके कई दशकों बाद ग्वालियर के सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने लगभग 1732 के आसपास में महाकाल मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार करवाया था। उसी समय नागचंद्रेश्वर मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद किसी भी व्यक्ति का किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए विशेष रूप से सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। सभी भक्तो की सिर्फ यही मनोकामना रहती है कि किसी भी तरह से नागराज पर विराजे शिवशंभु की सिर्फ एक झलक पा ले। हर साल की नाग पंचमी के दिन लगभग दो – ढाई लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करते हैं।
नोट :- इस साल भी कोरोना की वजह से मंदिर में भक्तो को एंट्री नहीं मिलेगी। किंतु भगवान महाकाल के दर्शन के लिए प्री – बुकिंग जरुरी है।
FAQ :- आखिर क्यों साल में सिर्फ एक ही दिन खुलता हैं उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर ?
उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में नाग राज तक्षक स्वयं विराजमान है और उन्हें ज्यादा परेशानी न हो इसलिए इसे साल में सिर्फ एक दिन 24 घंटो के लिए ही खोला जाता हैं। कुछ लोगों यह भी मानते है की नागराज तक्षक इस दिन के लिए मंदिर में स्वयं आते हैं और कुछ भक्तो को दर्शन देते हैं।